गुरुवार, 25 मार्च 2010

खबरिया चैनलों में त्योहारों का मौसम

खबरिया चैनलों में त्योहारों का मौसम
भारत त्योहारों का देश है हमारे देश में वर्ष भर एक-एक करके त्योहार आते हैं और हमारे जीवन को हर त्योहार नई ताजगी देता है। लोग महीनों से त्योहार का इंतजार करने लगते हैं और साथ में तैयारी भी करते हैं कि इस दीवाली में नया क्या खरीदेंगे, इस बार क्रिसमस में कौन सी नई जगह घूमने जाएंगे। इसी तरह नाना प्रकार के प्रोग्राम लोग वर्षो से बनाते चले आ रहे हैं और हर त्योहार का पूरा लुत्फ उठाने की कोशिश भी करते हैं।
खबरों के भूखे खबरिया चैनल खूंखार शेर की तरह खबरों की तलाश में रहते हैं। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि होली आने वाली है तो बाजार में रंग बिकने बाद में शुरू होते हैं, खबरिया चैनल उससे पहले होली के त्योहार को बेचना शुरू कर देते हैं। हर खबरची चाणक्य को ये डर सताता रहता है कि कहीं मेरी दुकान जमने से पहले दूसरा चैनल होली के त्योहार को न बेचना शुरू कर दे और मुझे जूठी थाली चाटनी पड़े। इसी भागम-भाग में होली के कई दिन पहले से चैनलों में गुलाल उड़ने लगता है तड़का मारकर ऐसे-ऐसे चटकीले होली के प्रोग्राम दिखाते है कि ऐसा लगता कि इनका बस चलता तो टीवी से निकल कर दर्शक को गुलाल और रंग से लाल कर आते। पर बेचारा दर्शक खबर की तलाश में रिमोट से चैलन बदल-बदल कर वैसे ही लाल हो जाता है।
त्योहार को बेचने के लिए चैनल के चतुर हलवाई ज्योतिषियों को अपना सेल्समैन बनाकर एंकर के साथ बैठा देते हैं एंकर महोदया ज्योतिषी महोदय से ऐसे सवाल करती हैं जैसे उन्होंने पहली वार होली के त्योहार का नाम सुना हो, एंकर महोदया ‘पंडित जी हमें होली के बारे में कुछ बताइए ‘ फिर पंडित जी ऐसे शुरू हो जाते हैं जैसे होली में अभी-अभी पीएचडी करके लौटे हों। ग्राफिक्स के गुर्गे रंगों से टीवी स्क्रीन को बदरंग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वो रह रह कर दूसरे चैनल देखते रहते हैं कि दूसरा चैनल कितनी बड़ी पिचकारी से कितनी दूर तक रंग की मार कर रहा है। उनकी कोशिश होती है कि उनकी मिसाइल दूसरे चैनल से लंबी हो और दूसरे चैनल से ज्यादा रंग फेंके टीवी स्क्रीन पर विजुअल जाए तेल लेने। होली को बेचने की ऐसी सनक टीवी चैनल पर चढ़ी होती है जैसे पूरे देश में सिर्फ टीवी चैनलों को होली मनाने का टेंडर दे दिया गया हो।
फिल्मी सितारों की होली इनके लिए प्रोग्राम में भांग का काम करती है जैसे ही विजुअल आए चतुर हलवाई उसको घोंटना शुरू कर देंते है। और ऐसा प्रोग्राम बनाते है कि अगली बार फिल्मी सितारे होली खेलने से पहले सौ बार सोचते हैं। किस हीरो ने किस हेरोइन को रंग लगाया, कैसे रंग लगाया, रंग खेलते वक्त हेरोइन ने कैसे कपड़े पहने थे? वो कितनी सेक्सी लग रही थी? किसके साथ ज्यादा होली खेल रही थी किसके साथ कम। ये सब भांग की तरह घोंट-घोंट कर बार-बार दिखाते हैं।
चैत्र की शुरुआत होते-होते नवरात्र का बुखार चैनलों के सिर पर चढ़कर बोलने लगता है और फिर हर दिन नए-नए पंड़ित अपनी-अपनी बुद्धि का बखान ‘बमबारी’ के तौर पर करने लगते हैं। हर नई तिथि को पंडित जी महाराज हर राशि की चौहद्दी क्षणभर में नाप लेते हैं और विभिन्न प्रकार के उपाय अपने दर्शकों को बाबा रामदेव के योगआसन की तरह अपने दर्शकों को बताने लगते हैं। कुछ चैनल हर दिन की पूजा से जुड़ी हुई विधियां और व्याधियां दोनों का घमासान मचाते हैं, तो कुछ चैनल दिन के हिसाब से राशियों को तराजू पर तौल कर उनके भार के मुताबिक प्रार्थना, पुनश्चरण तथा पुर्नस्थापन का राग अलापते हैं। एकआध चैनल तो तीन प्रहर की लंबाई-चौढ़ाई और गहराई माप कर दर्शकों के प्रश्न पर धोनी की तरह छक्के लगाते हुए दिखाई देते हैं। किसी चैनल में एक पंडित दुर्गा के नाम पर ही लक्ष्मी का आवाहन करवा देते हैं। तो दूसरा चामुंडा या शैलपुत्री से कुबेर के घर में डाका डालने की तरकीब बताते हैं। कुछ एक पंडित नवरात्र को भगवान श्रीराम के जन्म से जोड़ते हैं। तो कुछ एक धर्माधिकारी चैत्र की बयार को रवि फसल की कटाई से जोड़ देते हैं।
कुल मिलाकर नवरात्र के नौ दिनों में हिंदू सभ्यता के सारे अध्याय दीमक की तरह चट कर जाते हैं और देवी-देवताओं के प्रति आस्था की वजाए डर की कील ज्यादा ठोंकते हैं।
इसी बीच में कहीं गुडी पर्व आ गया तो विशेषकर मराठी लोगों के लिए क्या करें, क्या न करें का पाठ सुबह से शाम तक चलता है तो कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए ‘युगादि’ की महत्ता और उस अवसर पर गन्ना तथा नीम खाने के महत्व का बखान होता है।
उसके बाद से लेकर सावन तक तो कुछ माहौल ढीला सा रहता है उसके फौरन बाद जब त्योहारों की झड़ी लगने लगती है तो कई खबरिया चैनलों में विशेष कार्यक्रमों की बारिश उसी रफ्तार से होने लगती है। कोई चैनल नाग पंचमी के अवसर पर स्टूडियों में ही सपेरा पकड़ कर ले आता है और उसकी बीन पर चैनल मालिक के साथ चैनल के पदाधिकारियों की फौज भी ‘नगीना’ फिल्म में श्रीदेवी की तरह नाचने लगते हैं। वैसे भी हमारा भारत कई मामलों में बड़ा ही अजीबो-गरीब देश है जहां चींटी से लेकर चूहा या फिर गाय से लेकर हाथी तक की पूजा और उसके फल का महात्म भी बड़े-बड़े ग्रंथो में वर्णित है तो बेचारी जनता क्या करे।
हमारे खबरिया चैनलों के बादशाह इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि धर्म के नाम पर कोई भी लीला या नौटंकी कर लो जनता हर मौके पर हाथ जोड़े और सिर झुकाए हमेशा खड़ी रहती है। इसीलिए बड़े-बड़े त्योहारो के बावत हर किस्म का ब्यंजन परोसने के लिए अलग-अलग इलाके से चौंका देने वाले विशेषज्ञ को बुलाने की कवायद शुरू हो जाती है। और इनमे से जो विशेषज्ञ या पंडित सर्कस के जोकर की तरह दर्शकों को रिझाने में कामयाब हो गए तो उनसे बड़ा बाजीगर कोई नहीं।
कई चैनलों के मालिक इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि क्रिकेट मैच के बाद सबसे ज्यादा कोई चीज उन्हें छोटे पर्दे पर पसंद आती है तो वो है त्योहारों का मौसम। इसलिए वो हमेशा ऐसे लोगों की तलाश में रहते हैं जिनके चमत्कारी कारनामे चैलन में चार चांद लगाते रहें।
या फिर उनके पास ऐसा कोई और नया नुस्खा हो जिसका पेड़ एक ही दिन में बड़ा होकर पूरे टीवी स्क्रीन को ढक ले। इसलिए ऐसा अक्सर देखा गया कि श्रवण से लेकर दीपावली के बीच जितने बड़े छोटे त्योहार होते हैं वो कई खबरिया चैनल के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम कर जाते हैं। अब ये उस चैनल विशेष पर निर्भर करता है कि वो किस त्योहार विशेष के आटे में कितना ज्यादा गुड़-शक्कर डाले और उसमें कितनी आंच दे ताकि कार्यक्रम का हलवा और जलेबी दिन भर पकता रहे और दर्शक झोला भर भर कर अपने घर के साथ-साथ मुहल्ले भर में सबको बांटकर खिलाता रहे।
दशहरा और दीपावली दो ऐसे पर्व है जिनमें हर चैनल हर किस्म का खेल खेलता है और ऐसे त्योहारों को ऐसी-ऐसी घटनाओं से जोड़ता है जिसका कोई तार्किक आधार नहीं होता। दशहरा में तो 9 दिन का सामान बड़े ही व्यापक पैमाने की तैयारी के रूम में परोसा जाता है। बस शहर में बीस-पचीस बढ़िया पूजा पंडाल होना चाहिए। पूजा के विधि-विधान से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रम और खाने पीने की वस्तुओं से लेकर ऐसी-ऐसी लाइव रिपोर्टिंग होतीं है जिसे देख सुनकर कई दर्शक अपने घर की पूजा का विधि-विधान भी भूल जाते हैं। दशहरे के मौके पर जगह-जगह दिखाई जाने वाली रामलीला को ‘मिक्सी’ में पीस कर न्यूज चैनल लीला बनाते है जो कहीं-कहीं गरीबी में आटा गीला जैसी हालत को भी दिखाता है। जैकेट और ‘टॉप बैंड’ का ऐसा तांडव रचते हैं कि न्यूज चैनल में रामलीला देख रहा दर्शक विजुअल देखने को ऐसे तरसता है जैसे रेगिस्तान में प्यासा पानी के लिए।
ताड़का वध की तैयारी चैनल कई दिन पहले से करने लगता है और बिजली चमका-चमका कर एक ही विजुअल को ट्रीट कर ऐसे दिखाया जाता कि ताड़का ने भी कभी सोचा नहीं होगा कि उसका वध एक ही दिन 50 टीवी चैनल मिलकर 200 बार कर देंगें। एक-एक दिन की रामलीला न्यूज चैनल भारत की जनता को ताज़ा खबर की चाशनी में लपेट कर ऐसे दिखाता है जेसे जनता ना राम को पहचानती हो न सीता को और दसानन रावण को। त्योहारों के सेल्समैंन बने पंडित जी को बुलाकर रामलीला पर व्याख्यान दिलवाया जाता है। पंडित जी रामकथा की ऐसी जुगाली करते-करते आधी भूली-आधी बिसरी चौपाई के सिर पैर जोड़ कर दर्शकों को ऐसे आत्मविश्वास से सुनाते है जैसे आज नई रामायण की रचना करके छोड़ेंगे। घर में बैठा दर्शक न्यूज चैनल में ये सब देखकर सारे गा मा पा की तरफ ऐसे भागता है जैसे धुएं से भरे कमरे से निकल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए लोग दौड़ते हैं। दशहरे के दिन रावण के दहन की खास तैयारी की जाती है टीआरपी में कोई कमी न रहे। इसलिए रावण पर पूरा ध्यान दिया जाता है। ग्राफिक्स के गुर्गों की फौज रावण के एक एक सिर को टीआरपी का एक एक अंक मान कर रचती है और फिर जैकेट में चिपका कर टीवी स्क्रीन पर रावण को ऐसे लटका दिया जाता है जैसे उसे फांसी की सजा सुना दी गई हो। न्यूज चैनलों के हलवाई का बस चलता तो टीआरपी के लिए दस सिर वाले रावण के सिर पर 5 और सिर जोड़ देते।
आजकल जो नया ट्रेंड चला है कि हर त्योहार पर टीवी के हर सीरियल के पात्र तीन चार एपिसोड तो त्योहार मनाने में ही गुजार देते हैं। दर्शक बेचारा सीरियल में आगे क्या होगा इसी इन्तजार में बैठा-बैठा खून के घूंट पीता रहता है और चैनल वालों को कोसता रहता है। वो प्रोग्राम बंद भी नहीं करना चाहता क्योंकि चैनल वालों ने सीरियल दिखाकर उसकी ये जानने की भूख बढ़ा दी है कि आगे क्या होगा।
मन मारकर भी टीवी पर वही होली, दीवाली मनाते हुए कलाकारों को बर्दास्त करना पड़ता है। पर इससे चैनल वालों को क्या फर्क पड़ता है। उनको तीन, चार एपिसोड का मसाला मुफ्त में मिल जाता है जनता तो बेचारी उनकी मुट्ठी में फंस गई है जायेगी कहां?
दीवाली का त्योहार न्यूज चैनलों के लिए मिठाई की तरह हैं जिसे वे पानी पी-पी कर बार-बार दर्शकों को चखाते हैं। दीवाली के आते की बाजारों की रौनक, रंग-बिरंगे दीपक, लड़ियां-झड़ियां क्या कहां मिल रहा है किस शहर में क्या खास चीज मिल रही है सब कुछ दिखाने का ठेका जैसे उद्योगपतियों ने न्यूज चैनल वालों को दे रखा है। कौन सी मिठाई, कौन सी गुझिया आप खाइए कौन सी न खाएं ये आपको न्यूज चैनल वाले बता देंगे। और ऐसे बताएंगे जैसे सालों से मिठाई और गुझिया बेचने का काम करते रहें हो। दीवाली में रिपोर्टरों को खास हिदायत दी जाती है कि बाजार से अच्छे विजुअल शूट करके लाएं। फिर क्या रिपोर्टर दीवाली के 2 दिन पहले से सी युद्ध स्तर पर विजुअल बटोरने लग जाते हैं कई बार दुकानदार कहने लगते हैं कि ग्राहक कम और चैलन वाले ज्यादा बाजार में घूमते दिखते हैं। किसी प्रोडक्ट में क्या ऑफर चल रहा है?, किसके साथ क्या फ्री मिल रहा है?, ये सब न्यूज चैनल वाले ऐसे तड़का मारकर दिखाते हैं जैसे किसी खास प्रोडक्ट के बिक्री का इन्हें ठेका मिल गया हो कि 100 फ्रीज बिक्री करवा दो और 4 मुफ्त ले जाओ। देश-विदेश की खबर जानने के लिए टीवी के सामने बैठ दर्शख चातक की तरह ताकता रहता है कि कब न्यूज चैनल पर खबर चलेगी। चातक को स्वाति नक्षत्र पर बारिश की बूंद नसीब हो जाती है पर खबरों के प्यासे दर्शक के नसीब चातक जैसे कहां?
क्रिसमस के एक हफ्ते पहले से ही छोटे से लेकर बड़े शहर शादी की दुल्हन की तरह सजने लगते हैं। कपड़ों की दुकान से लेकर चैनल के न्यूजरूम तक शांताक्लाज़ हर कोने में कुकुरमुत्ते की तरह दिखाई देता हैं। शांताक्लाज की गुड्डीज और सफेद दाढ़ी में लाल कपड़ा एक ऐसा तिलिस्म पेश करता है जिससे बच्चे, बूढ़े सब प्रभावित होते हैं और एक हफ्ते पहले से ही इसकी डुग-डुगी हर समय पहले से ही बजना शूरू हो जाती है और 24 दिसंबर की रात में तो हर चैनल के स्क्रीन पर झिंगल वेल की आवाज हर घंटे में सुनाई देती है। और 31 दिसंबर आते-आते तो पूरा देश नए साल के स्वागत में ऐसे तैयार होता है मानो किसी नवविवाहिता वधू का स्वागत करने के लिए पूरा परिवार स्वागत करने के लिए खड़ा हो।
लब्बोलुआब ये है कि पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां त्योहार का मौसम तकरीबन बारहों महीने किसी न किसी रूप में मनाया ही जाता है ये अलग बात की उसमें अक्सर ही सूखे की हल्दी और बाढ़ का कीचड़ देश के कुछ हिस्सों को इन त्योहारों की रौनक से महरूम कर दे मगर आम तौर पर हमारी जनता भी अब सिलिब्रेशन के नए-नए लटके झटके और रश्मो रिवायत से बखूबी वाकिफ वो गई है और दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा इसी की बाढ़ में तैरता और डूबता दिखाई देता है।
कई लोगों के लिए दूरदर्शन ही पर्व, त्योहारों के कलेंडर का काम करता है। तो अन्य लोगों के लिए त्योहारी रश्मो-रिवायत का ऐलार्म भी बनता है। ये ही वजह है कि भारत में टेलीविजन मय्या की महिमा अपरम्मपार है। और उसी में देश की आबादी के बड़े हिस्से का बेड़ा पार है।

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