मंगलवार, 9 मार्च 2010

क्राइम शो की खेती

पिछले हफ्ते एक मित्र से मिलने गाज़ियाबाद गया तो वहाँ एक अजीबो गरीब नजारा देखने को मिला। मेरे मित्र के छोटे भाई का बायां हाथ टूटा हुआ, चेहरा सूजा हुआ और बदन पर कई जगह पर चोट के निशान थे। पूछने पर पता चला कि वो बेचारा किसी माल में घूमने गया था और वहाँ कुछ लोगों ने उसकी अचानक पिटाई कर दी। उसका कसूर सिर्फ़ ये था कि वो एक खबरिया चैनल में 'इंटर्न' के तौर पर काम करने गया था। वहाँ उसे किसी क्राइम शो के लिए कुछ दृश्यों का 'नाट्यरूपातंरण' करने को कहा गया जिसमें उसकी भूमिका एक बलात्कारी की थी। मॉल में घूमते वक्त कुछ लोगों ने वही प्रोग्राम किसी टीवी चैनल पर आते देखा और सामने ही उस शो के बलात्कारी को मजे से घूमते देखकर अपना सारा आक्रोश उसी पर निकाल दिया।

में हैरान रह गया। तभी मेरे मित्र की मां सामने आई और हरी-हरी बद्दुआओं की बौछार शुरू हो गयी "बेड़ा गर्क हो इन चैनल वालों का' एक तो मेरे फूल से बच्चे से गधे की तरह काम करवाते हैं और फिर उल-जलूल की रिकॉर्डिंग करते हैं और देखो कल इसका क्या हाल हो गया। धिक्कार है तुम लोगों पर जो ऐसी नीच हरकत करते हो और सामाजिक मूल्यों और मान्यताओं का सत्यानाश करने पर तुले हो"।
मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। फिर माताजी ने जो एक और कहानी सुनाई उसे सुनकर दिल वाकई बैठ गया। दरअसल हुआ ये कि उनके एक रिश्तेदार की लड़की पत्रकारिता का कोर्स खत्म कर एक चैनल में 'इंटर्नशिप' करने गयी थी। वहां उसको किसी खास क्राइम शो के लिए किसी कहानी का 'रिकस्ट्रक्शन' के एक किरदार का रोल करने को कहा गया। लड़की खुश थी कि इसी बहाने उसकी शक्ल टीवी पर दिख जायेगी। कार्यक्रम के प्रभारी ने ये झाँसा दिया कि एंकरिग सीखने के लिए कैमरे के सामने निडर होना अत्यन्त आवश्यक है। पर लड़की को ये नहीं पता कि इसका अंजाम क्या होगा।
खैर, क्राइम की स्टोरी का वो अंक रिकॉर्ड कर लिया गया। मगर बम तो तब फूटा जब उस लड़की की होने वाली सास ने ये कह कर मंगनी तोड़ दी। कि ऐसी कुलक्षिणी को अपने घर पर कैसे ला सकती है जब उसके बलात्कार का नजारा पुरी दुनिया ने टीवी पर देख लिया है।

तब मुझे लगा कि खबरिया चैनलों द्वारा की जा रही क्राइम शो की खेती से निकली फसल कितनी तीखी और जहरीली हो रही है और उसका जनमानस तथा खासकर बच्चों के दिलों-दिमाग पर क्या असर हो सकता है।
दरअसल भारत का दर्शक समाज अक्सर अमेरिका तथा ब्रिटेन के कई क्राइम शो की फूहड़ नकल का आदर्श कूड़ेदान बनता जा रहा है। हैरानी की बात ये है कि बीस साल पुराने शो को भी भारत में स्थानीय जड़ी-बूटी डालकर परोसने के बाद भी हमारी जनता उसे भैंस के चारे की तरह भकोस रही है। अमेरिका में 1960 तथा 1970 के दशक में लॉ एंड ऑर्डर मियामी वाइस ब्रुकलिन साउथ या एनवायपीडी जैसे क्राइम संबंधित शो काफी लोकप्रिय रहे। एनवीसी चैनल पर दिखाया गया “गैंगबस्टर” शो काफी चर्चित रहा जिसमें पुलिस की फाइल से उठाए गए अपराधी तथा अपराधियों के कारनामों को नाट्यरुपांतरण करके जनता को इनके बारे में अपील तथा आगाह करने का प्रयास किया गया था। उससे भी बेहतर रहा क्राइम स्टोरी। गुस्ताभ रेनिंगर तथा चक एडमसन द्वारा निर्मित क्राइम स्टोरी शो को उस समय एनवीसी टीवी के तीन करोड़ से ज़्यादा दर्शक बड़े चाव से देखते थे। उसी के मुक़ाबले एवीसी चैनल ने ‘मूनलाइटनिंग’ नामक क्राइम शो दिखाना शुरु किया था। उदाहरण के तौर पर क्वीन मार्टिन का ‘अनटचेबल्स’ क्राइम शो एफबीआई की फाइलों से ली गई सच्ची कहानियों पर आधारित था। मार्टिन द्वारा बनाए गए अन्य क्राइम शो में ‘द फ्यूजीटिव’ एफबीआई कैनन आदि काफी चर्चित रहे। सन 1980 के दशक में जोसेफ वामबाग का पुलिस स्टोरी भी काफी कामयाब रहा जिसने अपराधियों की सही मनस्थिति और अपराध की दुनिया में पुलिस विभाग की कमियों और साठ गांठ की पोल खोली थी। उसके बाद फॉक्स चैनल पर प्रसारित हुआ अमेरिका का ‘मोस्ट वांटेड’ जिसने लोकप्रियता के सारे पायदान तोड़ दिए और अमेरिकी दर्शक उसके दीवाने हो गए। इस शो के चलते दर्शकों में खूंखार अपराधियों के ख़िलाफ जागरुकता पैदा हो गई और 1990 से 1992 के बीच इस शो में दिखाए गए 159 में से कुल 45 शातिर अपराधी जनता द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर पकड़े गए।
उसके बाद तो दुनिया के कई देशों में टीवी चैनलों पर ऐसे क्राइम शो की झड़ी सी लग गई और हमारा देश भी इससे अछूता नहीं रहा। सबसे पहले देश की जनता ने अपराध से जुड़े सीरियल पंकज कपूर का ‘करमचंद’ देखा जिसमें उन्हें बुद्धि का उद्भव केंद्र था और ‘शट-अप किटी’ तकिया कलाम बड़ा मशहूर हुआ था। इसी तरह अंग्रेजी का पहला क्राइम सीरियल था ‘शरलक होम्स’ जिसको मध्यमवर्गीय जनता ने एक नए अजूबे की तरह देखा और सराहा।
मगर सही मायने में भारत का पहला असली क्राइम शो था शोएब इलियासी का ‘इंडियाज़ मोस्ट वांटेड’, जिसके ज़रिए बड़ी बड़ी अपराध की घटनाओं का रिकंस्ट्रक्शन करके दिखाया जाता था और अपराधी की असली तस्वीर भी दर्शकों को दिखाई जाती थी और उससे भी नायाब था इलियासी का बड़ा ही नाटकीय प्रस्तुतिकरण और उनकी आवाज़। 1998 में शुरु हुए इस शो ने इलियासी को रातों रात स्टार बना दिया था। मगर दुर्भाग्य से इतने लोकप्रिय क्राइम शो के प्रस्तुतकर्ता खुद ही अपनी पत्नी को छुरा घोंपने के आरोप में पकड़े गए और जेल की हवा भी खाली।
उसके बाद जो दौर शुरु हुआ उसमें हर ख़बरिया चैनल अपने ही आंगन में दो से पांच क्राइम शो तक धनिया और मैथी की तरह उगाने लगे। आज तक से लेकर ज़ी न्यूज़ तक ने भी इसमें कई नए हथकंडे अपनाए और उसका कुंडा विज्ञापन के मकड़ों को पकड़ा दिया और करीब चाल बरसों तक यही क्राइम शो इन चैनलों की तिजोरी भरने लगा। आलम ये हुआ कि हर हफ्ते बलात्कार और हत्या, कबूतरबाज़ी से लेकर तमाम तरह के गुनाहों की फेहरिस्त इन कार्यक्रमों में खोजी और शामिल होने लगी और एक रिपोर्ट के अनुसार आईसीआईसीआई बैंक से लेकर नेवला छाप दंतमंजन तक बनाने वाली कंपनियों ने विज्ञापनों की बरसात कर दी। इन सारे चैनलों पर दिखाए गए क्राइम शो उर्दू शब्द कोष के कुछ पन्ने की तरह दिखाई दे रहे थे। आज तक के जुर्म और वारदात से लेकर तफ्सीस, सफेदपोश मुजरिम से लेकर फरार मुजरिम तक दिखा तो ज़ी न्यूज़ ने क्राइम रिपोर्टर और क्राइम फाइल की फाइल ही खोल डाली। सहारा टीवी ने ‘हैलो कंट्रोल रुम’ बनाया तो आईबीएन-7 ने ‘क्रिमिनल’ और हर हफ्ते टीआरपी के थर्मामीटर का पारा आसमान छूने लगा। उधर सोनी पर क्राइम पेट्रोल से लेकर एनडीटीवी इंडिया का एफआईआर और डायल 100 लोगों के दिमाग पर ताबड़तोड़ घंटिया बजाने लगा। और पिछले तीन सालों तक आलम ये था कि भारत में ख़बरिया चैनलों पर 37 ऐसे क्राइम शो की फसल लहलहा रही थी। और जनता अगहन में पके धान की तरह उसे दोनों हाथों से उठाकर अपने बैडरुम तक ले जा रही थी। लेकिन क्राइम शो की दुनिया में जितना बड़ा धमाका बीएजी फिल्म्स द्वारा निर्मित सनसनी ने किया उसकी आज तक कोई मिसाल नहीं है। तभी ये पहली बार मालूम हुआ कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बुलाए गए कलाकार कितनी आसानी से ये काम कर सकते हैं। अपने अनोखे नाजनख़रे की वजह से दर्शकों के चेहरे पर मुस्कराहट भले ही एक सेकेंड के लिए ना ला पाए लेकिन एक आम ख़बर को ख़ौफनाक बनाकर दर्शकों के जेहन में डर का कतरा ज़रुर डाल दिया जाता है। चाहे डी डी न्यूज़ पर रंगे हाथ हो या फिर इंडिया टीवी पर एसीपी अर्जुन या फिर स्टार न्यूज़ पर सनसनी। इन तमाम क्राइम शो की एक ही मंशा है और वो है दर्शकों के भेजे में डर की गोली दाग़ना। ऐसे कई उदाहरण है जहां क्राइम शो देखने के बाद लोगों की रात की नींद उड़ गई। कई महिलाओं का गर्भपात हो गया और कई बच्चे मानसिक तौर पर विचलित हो गए। कई मनोचिकित्सक भी ये मानते हैं कि इस तरह के शो से मानसिक तनाव और आघात लगता है और इसे देखकर दर्शक हताशा की स्थिति में पहुंच सकता है। शायद इसीलिए विदूषक राजू श्रीवास्तव ने अपने शो में स्टार न्यूज़ में दिखाए जाने वाले सनसनी कार्यक्रम और उसकी टैग लाइन आप कहीं मत जाइए, हम ब्रेक के बाद फिर हाज़िर होते हैं एक नई सनसनी लेकर। राजू ने अपने अंदाज़ में कहा कि दर्शक सनसनी देखकर इतना भयभीत है कि वो उठकर कहीं जा ही नहीं सकता।
मगर पिछले 3 सालों में जनता को गुनाह के संगीन किस्सों की असली किरदार, प्रस्तुतकर्ताओं के हैरतअंगेज अंदाज तथा डरावना और कनफोड़वा संगीत की छौंक ने इतना विचलित कर दिया कि वो इसके नाम से दूर भागने लगे। आज भी कुछ चैनलों पर हालांकि ऐसे क्राइम शो चल रहे हैं मगर उनकी लोकप्रियता और दर्शकों के मूड में काफी बदलाव आ गया है।


चैन से सोना है तो जाग जाओ......। आज हम दिखाएंगे आपको ऐसा खौफनाक मंज़र......। खूनी खेल देख कर आपका दिल दहल जाएगा...... जैसे डरावने शब्दों के साथ नाटक कंपनी से भर्ती किए गए एंकर खबर कम बताते हैं आंखे और मुंह ज्यादा चमकाते हैं। क्राइम शो की खेती करने वाले न्यूज चैनल के चाणक्य टीआरपी के लिए क्राइम कि खबरों में खाद और पेस्टीसाइड्स का ऐसा तड़का लगाते हैं कि दर्शकों को समझ में नहीं आता कि वो समाचार देख रहे हैं या डरावना सीरियल। कई बार तो ऐसा होता कि रात को 11 बजे न्यूज चैनल पर चल रहा क्राइम शो देख रहा दर्शक इतना डर जाता है कि रात भर अच्छे सो नहीं पाता उसे उस भुतहे एंकर की वही लाइन बार-बार सुनाई देती है कि ऐसा आपके साथ भी हो सकता है।
क्राइम शो की खेती करने वाले चैनलों का बस एक ही मकसद होता है कि हमारे प्रोग्राम की टीआरपी दूसरे चैनल से ज्यादा हो। क्राइम की खबर जाए तेल लेने, बस टीआरपी घी लेकर आ जाए। हद तो जब हो जाती है जब क्राइम शो में नाट्यरूपांतरण दिखाया जाता है गांव में बैठा भोला-भाला दर्शक अपने बेटे से कहता है ‘ये बेचारी लड़की का बलात्कार हो रहा है और टीवी वाले चित्र उतार रहे हैं, बचाते काहे नहीं’....... वो बेचारे गांव का आदमी जिसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर होता होता टीवी स्क्रीन पर कोने में लगी छोटी सी नाट्यरूपांतरण का पट्टी पड़ नहीं पाता। और नाट्यरूपांतरण को सच्ची घटना मान लेता है। और इस तरह देश के हर कोन से टीआरपी के अंक चौके-छक्के की तरह आते है। चैनल के चाणक्य खुश होते है और एंकर अपनी नौटंकी की सफलता से एक दिन मशहूर अभिनेता बनने के सपने दिन में देखता है।
टीवी स्क्रीन पर खून के छींटे, धार दार चाकू, घूमती हुई पिस्तौल दनदनाती हुई गोली दिखाते हुए ऐसा बैकग्राउंड म्यूजिक लगाया जाता है घर में परिवार के साथ टीवी देख रहा छोटा बच्चा डर के मारे मां की छाती से चिपक जाता है। मां बच्चे की हालत देखकर पति से चैनल बदलने के लिए कहने लगती है। लेकिन खून खेल से टीआरपी की हांडी भरती रहे मासूम बच्चों के बारे में सोचने का वक्त न्यूज चैनलों के चाणक्यों के पास कहां? टीआरपी की भूख यहीं ख़त्म नहीं होती। कई बार जब प्रतिद्वंदी चैनल में टीआरपी से उद्वेलित क्राइम का कोई ज़बर्दस्त प्रोग्राम आता है तो दूसरे चैनल की सांस फूलने लगती है और जब कुछ समझ में नहीं आता तो चैनल के डायरेक्टर कहते हैं कि ब्लू फिल्मों को लेकर हमने पिछले साल जो प्रोग्राम दिखाया था उसको ही रिपीट कर दो। ब्लू फिल्मों के पैकेज को नए एंकर लिंक के साथ चला दो वो पूरी तरह बिक जाएगा। चैनलों की हालत कुछ ऐसी ही हो गई है, क्राइम को दिखाने का मकसद देश से अपराध का ख़ात्मा करना नहीं बल्कि टीआरपी के लिए उसका महिमा मंडन करना है।
पिछले दस साल से क्राइम की खेती कर रहे क्रिमनल माइंड पत्रकारों ने खूब बाह-बाही बटोरी, क्राइम शो ने फैशन शो से ज्यादा पैसा कमाकर दिया, नाम और दाम दोनों मिला..... क्राइम शो को पहले दर्शक जिज्ञासा से देखता था फिर मनोरंजन की तरह देखने लगा.... ऐसे में दस साल देखते ही देखते बीत गए लेकिन अब दर्शक क्राइम शो के तिलिस्म से निकल रहा है। क्राइम शो की खेती करने वाले किसानों की फसल अब नहीं बिक रही है टीआरपी के टोटे पड़ रहे हैं, खूनी खेल अब फेल हो रहे हैं, क्राइम शो देखते ही दर्शक अब ऐसे बिदक रहे हैं जैसे शादी के बाद लड़की अपने पुराने व्वॉयफ्रेंड को देखकर बिदकती है। क्रिमनल माइंड पत्रकार शब्द से हो सकता है कि हमारे कुछ साथी इत्तेफाक नहीं रखे लेकिन एक बार एक नामी गिरामी न्यूज़ चैनल के क्राइम शो की एंकरिंग करने वाले शख्स ने खुद टुन्न होकर एंकरिंग की और जनाब जब स्टूडियो से बाहर निकले तो खुद उनके सिर पर भी क्राइम की सनक चढ़ गई और उन्होंने दफ्तर में ही एक महिला एंकर का हाथ पकड़ लिया और कहने लगे मुझसे शादी करोगी। हालांकि महिला एंकर के तमाचे से उनके सिर से क्राइम का भूत तुरंत उतर गया लेकिन महाशय को कुछ दिनों के लिए चैनल से निलंबित कर दिया गया। हालांकि उन्हें दोबारा मौका मिला तो एक बार फिर ये जनाब टुन्न होकर क्राइम शो की एंकरिंग करने पहुंचे तो स्टूडियों में ऑन एयर ही लुढ़क गए लेकिन जनाब की नौकरी कई दिनों तक सही सलामत रही।
क्राइम शो की खेती में लगे ‘क्रिमिनल माइंड’ के रिपोर्टर बेचैन हैं चैनल के चाणक्य हैरान-परेशान है। समझ नहीं पा रहे कि खूनी खेल क्यों फेल हो रहे हैं। कुछ चैनलों की यहां तक नौबत आ गई कि उन्हें क्राइम शो की खेती बंद करनी पड़ी। नौटंकी करने वाले डरावने एंकर की नौकरी का तेल हो गया। नाट्यरूपांतरण रचने वाले नाटककार का रोल भी चपेटे में आ गया।

1 टिप्पणी:

  1. आपके दिए कुछ उद्धरण काल्‍पनिक से लग रहे हैं। क्राइम शो के नाम पर निस्‍संदेह बेहूदा चीजें दिखाई जा रही है लेकिन अंत में रिमोट तो पब्लिक के ही हाथ में है। और हां... दुनिया भर में अब तक प्रसारित अपराध कथाओं पर केंद्रित टीवी सीरियल्‍स में सबसे अच्‍छा सिर्फ एक ही सीरियल है The X-Files

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