दरअसल ज्योतिष का बुखार और ज्योतिषियों की हिदायते कभी-कभी इतनी भयावह और जानलेवा हो जाती है कि उसका अंत नहीं होता। एक साहब को एक ज्योतिषी ने बताया कि जब भी बिल्ली रास्ता काट जाए तो वो उसके आगे गाड़ी नहीं चलाएं किसी दूसरे को आगे जाने दें। एक दिन ऐसा ही तब हुआ जब वो अपनी वृद्ध माता को मरणासन अवस्था में अस्पताल ले जा रहे थे कि बिल्ली ने रास्ता काट दिया। वो 10 मिनट तक किसी और के आगे जाने का इंतजार कर रहे थे। मगर जब वो अस्पताल पहुंचे तो पाया कि उनकी मां का देहांत गाड़ी में ही हो गया और डॉक्टर के मुंह से निकला हुआ शब्द कि ‘काश आप यहां उनको 10 मिनट पहले ले आते ‘ उनको आज भी हर लम्हा सालता रहता है। इसी तरह एक ज्योतिषी ने एक साहब से यह कह दिया जिस लड़की से उनकी शादी हो उनके पीठ पर तिल के निशान जरूर देख लें। उन साहब ने घर आई लड़की से पहले वही सलूक किया और उसके हाथ से अपने मां-बाप के सामने ही थप्पड़ खा बैठे। कभी कभार ये कहना निहायत मुश्किल होता है कि क्या ज्योतिषी के मुंह से निकला हर वाक्य ब्रह्म वाक्य है या फिर आदमी के मन में डर या शंका ज्यो अक्सर मिलकर उसकी बुद्दि या और विवेक का कबाड़ा कर देते हैं। ज्योतिष ऐसा लड्डू बनकर रह गया है जिसको न निगले और न उगले बनता है। और अक्सर हां पढ़े-लिखे लोग भी ग्रह नक्षत्रों के चपेट में ऐसे आते है मानो की पतिंगा मकड़ी के जाल में फंस गया हो। लेकिन उससे निकलने के लिए छटपटा रहा हो।
मगर लब्बोलुआब ये है कि इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन ज्योतिषियों की फौज ने एक दो ऐसे साफ्टवेयर तैयार कर लिए जिसके चलते बेचारे तोते का पेशा भी छूट गया। उनको पता है कि आजकल के संभ्रांत से लेकर मध्यमवर्ग तक के लोगों के बीच सामान्य तौर पर तीन ही बीमारियां मिलती है। करियर, शादी और संतान का भविष्य और ज्योतिषियों की फौज इस कमज़ोरी से अच्छी तरह वाकिफ़ है इसलिए वो हर चैनल या अख़बार में कुंडली में ग्रहों की मंडली से लेकर नक्षत्रों के नखड़े, लग्नेश की लाठी, भाग्येश का झुनझुना, कर्मेश की कारस्तानी, लग्न का लोटा, मूल त्रिकोण की तिकड़ी, केंद्र का कृत्य, गोचर का गोबर, महादशा की महिमा, अंतर्दशा की जुगाली, प्रत्यंतर की परिक्रमा, सुखेश की सच्चाई, धनेश की धौकनी, चिंता की चिता, नवमांश का नमक, हौरा का हुल्लड़, कालचक्र का कुचक्र, साढ़ेसाती का मौसम और मांगलिक दोष का ऐसा लोमहर्षक और अधपकी खिचड़ी बनाते हैं जिसकी भूल-भुलैया में अच्छे अच्छे भी गुम हो जाए। अब ऐसे में ज्योतिष ज्ञान का केंद्र कम और त्रासदी ज़्यादा हो जाती है और आचार्य लोग ग्रहों के प्रकोप की ऐसी व्यूह रचना करते हैं कि उसमें अगर आप अभिमन्यू की तरह फंस गए तो आगे आपको जयद्रथ ही दिखेगा। यही वजह है कि बहुत से लोग इसी आशंका और भय से ग्रसित होकर इन ज्योतिषियों के दफ्तर के चक्कर लगाने पर मजबूर हो जाते हैं।
अब अख़बारों को देख लीजिए। तकरीबन हर अख़बार में दैनिक और साप्ताहिक राशिफल नियमित रुप से छपते हैं और आधी जनता उसी को पढ़कर अपने दिन-भर का कार्यकलाप तय करती है। और कई लोग तो उसे अक्षरश: सत्य मान लेते हैं। मिसाल के तौर पर एक अख़बार में एक ज्योतिषी ने सिंह राशि के व्यक्तियों के लिए भविष्यवाणी की, कल वो तुला राशि के लोगों से सावधान रहें। दुर्भाग्य से उनकी पत्नी की राशि भी तुला ही थी। वो बंधु घर पहुंचे और पूरी रात बिस्तर पर अपनी पत्नी को घूर-घूर कर देखते रहे कि क्या पता ये औरत कब धोखा दे जाएगी और इसी चक्कर में दोनों में तू-तू मैं-मैं इतनी बढ़ी कि एक हफ्ते में दोनों का तलाक हो गया। इसी तरह एक नामचीन चैनल पर राशि पढ़ने वाले पूरी दुनिया का भविष्य बता गए, मगर उनको ये नहीं मालूम पड़ा कि उनके बेटे की आधे घंटे के बाद एक सड़क दुर्घटना में मौत हो जाएगी। एक ऐसे ही सज्जन ने जब ये सुना कि अमुक दिन उनके लिए बहुत खराब है और ज्योतिषी महोदय ने टोटके के तौर पर पालक का पत्ता सुअर को खिलाने के लिए कहा। वो बेचारे पूरा दिन उसी की तलाश में घूमते रहे और जब शाम को सुअर मिली तो पत्ता खाने के बजाय उनके बाएं पांव का मांस ही फाड़ दिया और वो दस दिनों के लिए अस्पताल में भेज दिए गए।
इस तरह की घटनाएं तो आज भी अक्सर होती रहती हैं और ये सिलसिला पता नहीं कब जाकर रुकेगा। लेकिन इन ज्योतिषियों की वाणी उनका नाटकीय अंदाज़ और उनके वस्त्र भी ऐसे लगते हैं मानों वे इस संजीदे ज्ञानशक्ति का भी मखौल उड़ा रहे हैं। मिसाल के तौर पर एक नामचीन चैनल में बैठ जाने वाले ज्योतिषी महाराज की वेशभूषा ऐसी लगती है मानो वो सीधे शहंशाह अकबर के दरबार से आयातित किए गए हों। ये बाद में पता चला कि ये महाशय पहले दूरदर्शन लखनऊ केंद्र में एंकर हुआ करते थे। एक और नामचीन ज्योतिषी हैं जो चाणक्य के छोटे भाई दिखते हैं और उनके मुखारविंद से निकले शब्द ऐसे लगते हैं मानो किसी मॉल में पॉपकार्न उबल रहा हो। उससे भी खौफ़नाक नज़ारा एक ज्योतिषी का है जो अपने आप को शनिदेव का सबसे सच्चा सपूत मानते हैं। इनका राशिफल बताने का अंदाज देखकर ऐसा लगता है कि ये राशिफल कम बता रहे हैं डांट ज्यादा पिला रहे हैं। हैरानी की बात है जो कभी तंबू लगाते थे वो आज यंत्र मंत्र और तंत्र के सबसे बड़े तानाशाह के रूप में प्रतिष्ठित हैं ऐसा लगता है मानो शनिदेव उनसे पूछ कर ही कहर बरसाने की रणनीति बनाते हैं। और उनकी भविष्यवाणी भले ही सही हो न हो लेकिन हर शनिवार को करीब पांच सौ क्विंटल तेल की बिक्री का जुगाड़ हो जाता है। जनता में शनिदेव का डर बिठाने में इनका बड़ा योगदान है और इनके जलाल की महत्ता इस बात से आंकी जा सकती है कि एक ख़बरिया चैनल तो इनकी एक साल पुरानी भविष्यवाणी को भी टीआरपी के चक्कर में अपने चैनल पर दिखा रहा है। एक और चैनल पर तीन देवियां आती हैं जिनके नाज़ नखरे विदूषक राजू श्रीवास्तव को भी पसंद आते हैं। उससे भी बड़ी त्रासदी तब होती है जब एक चैनल पर एक तांत्रिक ये दावा करता है कि वो अपनी तंत्र विद्या से एक आदमी को मिनटों में मार देगा। पूरी दुनिया ये तमाशा लाइव देखती है। ज्योतिषी महाराज का तंत्र तो उस व्यक्ति का बाल भी बांका नहीं कर सका, अलबत्ता चैनल को इस ड्रामे के चलते जमकर टीआरपी मिली। ऐसा ही एक वाकया था बैतूल के पंडित कुंजीलाल का, जिन्होंने अपने मौत की भविष्यवाणी एक ख़ास दिन के लिए कर दी जिसके चक्कर में कम से कम तीन ख़बरिया चैनल टीआरपी का झोला भर-भर के घर ले गए। पंडित जी आज भी ज़िंदा है और अपने धंधे में तल्लीन है। पंडित जी तो नहीं मरे लेकिन सचमुच उस दिन ज्योतिष विद्या की मौत हो गई।
उससे भी अजीबोगरीब है टेरो कार्ड जिसमें ताश की पत्तियों को ऐसे बिखेरा जाता है मानों किसी व्यक्ति का भविष्य नहीं तीन पत्ती का जुआ खेला जा रहा हो। और जुए की तरह ही ज़िंदगी की बाज़ी लग रही हो। टैरो कार्ड रीडर मूर्खता की सारी हदों को पार करते हुए ऐसे ऐसे टोटके बताती हैं जो सुअर को पालक खिलाने जैसे ही मुश्किल हैं। मगर बेचारी जनता इन तमाम लटके झटके को ऐसे भकोसती है जैसे इससे बड़ा सच कोई और हो ही नहीं।
इसकी तीन सबसे बड़ी मिसाल जनता के सामने हैं। पहली मिसाल ये है कि हज़ारों लड़कियां तीस-पैंतीस साल की उम्र में भी कुंआरी रह जाती है क्योंकि ज्योतिषी लोग उनको मांगलिक करार दे देते हैं। लेकिन अगर यही कन्या फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय हो तो इन्हीं ज्योतिषियों की फौज लंबी चौड़ी फीस लेकर अभिषेक बच्चन से शादी करने से पहले एक केले के पेड़ के साथ शादी करने के बाद भगवान शिव का आशीर्वाद लेने की तरकीब बताती है।
ऐसे ही सन 2005 में दुबई में 50 हजार रुपये की तनख्वाह पर काम करने वाले भारतीय मूल के एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसको किसी ज्योतिषी ने बता दिया था कि उसकी मौत जल्दी हो जाएगी। इस डर से उस शख्स ने आत्महत्या कर ली।
यही हाल सन 2001 में नेपाल के राजकुमार दीपेंद्र का हुआ था जिसने अपने माता-पिता और राजपरिवार के कई लोगों की हत्या इसलिए कर डाली क्योंकि वो लोग एक ज्योतिषी के सलाह पर उसके पसंद की लड़की से शादी नहीं करने दे रहे थे। ज्योतिषी ने 29 साल के राजकुमार दीपेंद्र से ये कहा था कि वो 35 साल तक की उम्र तक शादी न करें वरना उनके पिता का देहांत हो जाएगा।
इस तरह के और सैकड़ों उदाहरण हैं जो ज्योतिष जैसी महाविद्या को फूहड़ बनाने की दिशा में कई अधपके और गलियों में कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं।
सबसे अजीबोगरीब बात ये है कि चैनल पर साप्ताहिक राशिफल बताने वाले ज्योतिषियों को भी इस खेल का हिस्सा बने रहने के लिये चैनल मालिक से लेकर प्रोड्यूसर तक के फरमान के आगे नतमस्तक होना पड़ता है क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में पूरे साल ही तीज त्योहार का मौसम होता है। मौनी अमावस्या से लेकर गुरु पूर्णिमा तक इतने लंबे पर्व त्योहारों की फेहरिस्त होती है कि जिसके बारे में बोलन और उससे जुड़े हुए उपाय टोटके हर राशि से जोड़कर बताना इनके लिए सर्वोत्म मौका होता है और ये दोनों नहीं चाहते कि ज्योतिष के इस फलते फूलते कारोबार में कोई अड़चन आए इसीलिए वो इसको भुनाने के लिए हमेशा नई तरकीब इजाद करते हैं और चैनल मालिक हमेशा उन्हीं ज्योतिषियों को बुलाते जो उनका और उनके चैनल का कल्याण करने के लिये हमेशा तत्पर हों । उन्हें मालूम है कि जनता तभी आकर्षित होती है जब अगल किस्म की भविष्यवाणी अति नाटकीय अंदाज में पेश हो।
इसीलिए कोई शनिदेव के कोप के बारे में बखान करता है तो कोई राहू का रौद्र रूप भगवान शंकर के तांडव के अंदाज में पेश करता है। कोई नक्षत्रों के नखरे और चाल की गति पर तिलिस्म पैदा करता है तो कोई उपायों की पुड़िया मंदिर के आगे भक्तों में प्रसाद की तरह बांटता है। जनता इसको बजरंग बली के लड्डू की तरह लपकती ही जाती है।
ख़बरिया चैनलों के मालिक इनका सहारा लेकर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और जनता को सही सीख देने की बजाय गुमराह कर रहे हैं। टीआरपी के चक्कर में चैनल के चाणक्य ऐसे ऐसे कार्यक्रम बनाते हैं जिससे दोनों की दुकान खूब चले भले ही एक आदमी का बेड़ा गर्क हो जाए। ये तो हमारे यहां की परंपरा रही है कि अजा पुत्रम बलिं ददात, देवो दुर्बल घातक:, और इन नक्षत्रों के चक्कर में अक्सर आम आदमी ही मारा जाता है।
सोमवार, 15 मार्च 2010
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