गुरुवार, 11 मार्च 2010

चैनलों को ज्योतिष का बुखार भाग-1

एक प्राचीन कथा पर विश्वास करें तो ज्योतिष एक श्रापित विद्या है। एक बार नारद जी कैलाश पर्वत पर पहुंचे भगवान शिव ने कहा नारद जी आप तो बहुत बड़े ज्योतिषी हैं, बताइए सती इस समय कहां है? नारद जी ने गोचर देखा और गणना कर बताया कि माता सती इस समय स्नान कर रही हैं और उनके शरीर पर कोई वस्त्र नहीं है। शिवजी बोले आने दीजिए पूछते हैं जब माता सती पहुंची तो शिव जी ने सारी बात बताई तो सती बोलीं नारद जी का द्वारा की गई गणना सही है लेकिन ऐसी विद्या जो वस्त्रों के पार भी देख ले ठीक नहीं है इसलिए मैं इस विद्या को श्राप देती हूं कि कभी भी कोई ज्योतिषी पूरी गणना सही ढंग से नहीं कर पाएगा। लेकिन ख़बरिया चैनलों को ज्योतिष का ऐसा बुखार चढ़ा है कि वे किसी भी बकलोल बगुला भगत को बुला कर लोगों की निजी जिंदगी के वस्त्रों को सारी दुनिया के सामने उघाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
ज्योतिष चर्चा की बात हो रही है तो मुझे महाभारत की कहानी याद आ गई। पांचों पांडवों में से केवल युद्धिष्ठिर महाराज ही स्वर्ग तक पहुंच पाए थे। बाकी के चार पांडव अपने अहंकार के कारण स्वर्ग के रास्ते से भटक गए थे। दरअसल, नकुल को अपनी सुंदरता का अभिमान था तो सहदेव को अपने ज्योतिषी ज्ञान, भीम को ताकत व अर्जुन को अपनी धनुष विद्या पर अहंकार था। इसके चलते राजा युद्धिष्ठर ही स्वर्ग तक पहुंच पाए। कुछ ऐसा ही अभिमान हमारे चैनलों और उनके कर्ता-धर्ताओं का भी है जो भले ही टीआरपी की गर्त में जाकर चैनल के माहौल को नारकीय बना रहे हों लेकिन लोगों को स्वर्ग की सीढ़िया दिखा रहे हैं।
हैरानी की बात ये है कि उसी ज्योतिष विद्या के आधार पर उसी दिन पांच आचार्य उन्हीं ग्रह नक्षत्रों की चाल-ढाल की गणना कर अपने ही अंदाज़ में जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश करते हैं। समुद्री विद्या वाकई बहुत ही अहम विद्या है बशर्ते कोई आचार्य उसे ठीक तरीके से समझ पाए। ज्योतिष अपने आप में ही एक बहुत बड़ा विज्ञान है बशर्ते ज्योतिषियों को लग्न-नक्षत्रों की गति की सही गणना करके फलित करने का-महारत प्राप्त हो। हमारे यहां प्राचीन काल से ही ज्योतिष विद्या में लोगों का भरोसा रहा है और अक्सर कई बार ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सच हुई है। आज भी देहाती इलाकों के ज्योतिष या कई उत्तम संस्थानों के आचार्य इस शास्त्र में महारथ रखते हैं। लेकिन ज्योतिष का बाज़ारीकरण और बदनामी उस वक्त शुरु हुई जब अधपके ज्ञान वाले ज्योतिषियों ने चैनलों का सिंहासन संभालना शुरु किया।
कुछ समय पहले एक साहब शहर के किसी नामी गिरामी ज्योतिष के पास पहुंचे। मोटी फीस और लम्बे इंतज़ार के बाद जब बच्चे की बारी आई तो ज्योतिषी महाराज ने ताल ठोककर बड़े ही नाटकीय अंदाज में ऐलान किया कि ‘बच्चा तुम्हारा भविष्य काफी उज्जवल है। तुम्हारे आगे-पीछे सुबह से शाम तक गाड़ियां ही गाड़ियां होंगी’। लड़के के माता-पिता खुश थे कि उनका बेटा तो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीएमडी से कम नहीं होगा। कुछ समय के बाद मालूम पड़ा कि उस लड़के को ट्राफिक पुलिस में नौकरी मिल गई। खबरिया चैनलों पर ज्योतिष का भूत इस कदर सर चढ़कर बोलता है मानो इससे बड़ी बीमारी दुनिया में और कुछ है ही नहीं।
आये दिन ज्योतिषों का नया कुनबा कुकुरमुत्ते की तरह हर गली कूचे में पनपने लगता है और फिर उस फौज में से एक हिस्सा खबरिया चैनलों का रुख करता है। ज़्यादातर ज्योतिषी जो कई खबरिया चैनलों में ब्रह्मा जी के बड़े पुत्र की तरह दुनिया में रखी हर चीज और तकरीबन हर देश और वहां के लोगों के भाग्य और दुर्भाग्य पर भविष्यवाणी करने लगते हैं, तो मानों ऐसा लगता है जैसे उनके सामने विवेक और विज्ञान दोनों बौने हो गए हों।
जिस तरह क्राइम शो ने मीडिया बाज़ार में जगह बनाई उसी तरह खबरिया चैनलों को एक और अस्त्र मिल गया जिससे करोड़ों की कमाई का रास्ता खुल गया। इस देश का दुर्भाग्य ये है कि ज्योतिष ऐसे बुखार में तब्दील हो गया जिससे राजा से लेकर रंक तक ग्रसित हैं।
हैरानी की बात ये है कि जो लोग दुनिया की हर चीज़ जानने का दावा करते हैं उनमें से बहुत ही कम ज्योतिषी ऐसे हैं जिन्हें ये मालूम कि ज्योतिष किन-किन युगों में किस प्रकार का रहा और इसकी भविष्यवाणी की गणना के स्रोत और आधार क्या रहे। आज भी देहातों में कोई भविष्य के बारे में बात कर दे तो फौरन उससे यही पूछा जाता है कि क्या तुम समुद्री जानते हों। इसका आधार ये है कि ज्योतिष के मूलत: दो भाग हैं एक गणित ज्योतिष और दूसरा फलित ज्योतिष। गणित ज्योतिष के प्रणेता भृगु ऋषि थे और उनकी लिखी हुई पुस्तक भृगु संहिता आज भी ज्योतिष विद्या का एक प्रमाणिक ग्रंथ हैं। ऋषि भृगु ने ही पहली बार समुद्री पद्धति से ज्योतिष की गणना की थी और चंद्रमा से प्रभावित इस विद्या में नक्षत्रों की चाल और बदलाव का गहन अध्ययन किया गया था। इस विद्या के तहत चंद्रमा को 27 नक्षत्रों का स्वामी माना गया है। दरअसल ये 27 नक्षत्र चंद्रमा की पत्नियां और दक्ष प्रजापति की पुत्रियां हैं। कहा जाता है कि चंद्रमा का क्षय रोग और चंद्रमा की गति इन्हीं 27 पत्नियों(नक्षत्रों)के आपसी झगड़े के कारण हैं। इसका एक प्रमाणिक तथ्य और भी है कि औरतों की माहवारी 27 दिनों पर ही होती है और कृष्णमूर्ति पद्धति के तहत एक पहर की 27 भागों में बांट कर गणना की जाती है। इसी पद्धति के तहत समुद्र में जल तरंगे सबसे ज्यादा पूर्णिमा की रात को ही उठती हैं।
दूसरी तरफ ऋषि पाराशर फलित ज्योतिष के प्रणेता माने जाते हैं जो आकाश विद्या से संबंधित हैं। इस पद्धति में सूर्य नवग्रह के मुखिया हैं और यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे के नियम से मानव शरीर को जोड़ा गया है। ऋषि पाराशर ने ही आकाश विद्या का गहन अध्ययन करने के बाद ग्रहों से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें बताईं थी जिनमें एक ये है कि हर मानव शरीर पर नवग्रहों का प्रभाव अवश्य पड़ता है और इसी पद्धति के तहत मनुष्यों को अंगुलियों में रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। पौराणिक तौर पर राजकुमार भरत का जन्म इसी पद्धति से काल और नक्षत्र की गणना के आधार पर हुआ था। आजकल के जमाने में फलित ज्योतिष के सबसे प्रकांड विद्वान के एन राव को माना गया है जिनकी भविष्यवाणी नवग्रहों की चाल पर आधारित रही है।
इसी क्रम में चरक ऋषि ने इस विद्या को नई गणना पद्धति के आधार पर एक और दिशा देने की कोशिश की थी। यद्यपि अपनी तपस्या में वो बहुत हद तक सफल नहीं हो पाए थे उन्होंने राजा सुशाद की पुत्री से प्रायश्चित के तौर पर शादी की थी। क्योंकि राजा सुशाद ने उनकी दोनों आंखें फोड़ डाली थी। ये भी याद रहे कि चरक ऋषि ने वो शादी एक ख़ास दिन ज्योतिष की गणना के आधार पर ही की थी और बाद में उन्होंने चरक संहिता में आदर्श कन्या के गुण भी बताए थे। उन्होंने एक महत्वपूर्ण श्लोक की रचना भी की थी जो इस प्रकार है...
दंता कुदृष्टि यदि पिंगलाक्षी, रोमम शरीरम अधरम च श्यामम
भालं विशालं यदि उच्च नाभि ऐते न ब्याहेत यदि राजकन्या
यानि जिस कन्या के दांत बड़े हों, देखने में बदसूरत हों, आंखे अगर कनजी हो, शरीर पर बड़े-बड़े रोम हो और ओंठ काले हों माथा चौड़ा हो, नाभि निकली हुई हो उस कन्या से कभी विवाह नहीं करना चाहिए भले ही वह राजकुमारी क्यों न हो।

पश्चिमी देशों के मुकाबले आज भी काफी बेहतर और सशक्त है, मिसाल के तौर पर लिंडा गुडमैन 12 राशियों में पूरी दुनिया की चौहद्दी माप लेती है जबकि हमारे यहां एक ही दिन में एक ही अस्पताल में एक ही समय पैदा हुए दस बच्चों की जन्म कुंडली और भविष्यफल अलग-अलग होता है। लेकिन भाग-दौड़ की इस दुनिया में किसके पास इतना वक्त है कि इन सब बातों में अपना समय गवाएं और सही गणना करें। इसीलिए अक्सर ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां सही साबित नहीं होती। आज की सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि सबसे ज्यादा फलित ज्योतिष फूलों और हरे हरे नोट का चढ़ावा है भले ही दस में से आठ पंडितों ने इन शास्त्रों का नाम भी न सुना हो और ग्रहों और नक्षत्रों की गणना तो दूर की बात है। पूरे देश में ऐसे 22 विश्वविद्यालय हैं जहां सरकार ने ज्योतिष को बीए तथा एमए के पाठ्यक्रम की मान्यता दे दी है। भारतीय विद्या भवन से लेकर कई निजी संस्थाओं, आश्रमों और विश्वविद्यालयों में ज्योतिष का पाठ पढ़ाया जाता है और हर साल हजारों डिग्रियां बांटी जाती है और इन्हीं डिग्रियों के आधार पर सैंकड़ों ज्योतिषी आसमान में बिखरे तारे की तरह हर तरफ दिखाई देते हैं। इन्हीं ज्योतिषियों की फौज अख़बारों में बड़े बड़े इश्तेहार देकर और ख़बरिया चैनलों पर खुद को महिमामंडित कर ऐसा हौव्वा खड़ा करते हैं मानों दिल्ली के गफ्फार मार्केट में सेलफोन बेचने वालों की गुहार लग रही हो। कई लोगों के लिए ज्योतिष भी एक नशा बन गया है और इसमें नेता से लेकर अभिनेता तक का कुनबा हर दिन किसी जिम में कसरत करते हुए दिखाई दे जाती है। जहां तक नेताओं की बात है तो सत्तर फीसदी नेतागण ऐसे है जिनका दिन बिना ज्योतिषी के निकलता ही नहीं और जिनकी रात राहुकाल, चौघड़िया और यमगंडम के बिना पूरी नहीं होती। अर्जुन सिंह से लेकर देवेगौड़ा तक भी बिना ज्योतिषी के परामर्श के कोई काम नहीं करते। और दक्षिण भारत के नेताओं की तो बात ही निराली है, क्योंकि मैंने ऐसे कई मंत्रियों को देखा है जो ज्योतिष गणना के आधार पर ही और लोगों से अपने दफ्तर में मिलते हैं। इसी तरह कई उद्योगपति और उच्च अधिकारी भी हर दिन चौघड़िया की सारणी और तालिका महत्वपूर्ण फाइल की तरह अपनी टेबल पर रखते हैं। और रही बात फिल्म जगत की तो भले ही वहां के सारथी और महारथी पश्चिमी पहनावे में अपने जिस्मों की नुमाइश करें मगर इस सबों का ज्योतिष में और ज्योतिषियों में बहुत ज्यादा विश्वास रहता है। फिल्म के मुहूर्त से लेकर उसके रिलीज करने की तारीख भी ज्योतिषी के परामर्श के बाद ही तय होती है। यहां तक कि कभी शाहरुख खान अपने हाथ में ताबीज गंडा बांधकर कहीं जा कर माथा टेंकते हैं तो कहीं एकता कपूर बिना बालाजी के दर्शन किए हुए और पंडित की सलाह और गणना के बगैर किसी नए टेलिविजन सीरियल का आगाज नहीं करती हैं। अमिताभ बच्चन से लेकर कई नामी गिरामी फिल्मी हस्तियां ज्योतिष में पूरी तरह विश्वास करती हैं और कई फिल्मी सितारे तो बिना उनके सलाह से घर के बाहर पैर भी नहीं रखते।
ये अलग बात है कि ज्योतिषी समाज में आपस में ही इतना वैमनस्य और झगड़ा कि एक आदमी की भविष्यवाणी पर उसका मीनमेख निकालने में दस और लोग कौआ की तरह टूट पड़ते हैं और बड़ी से बड़ी भविष्यवाणियों की बौछार शुरू हो जाती है। आजकल हर ज्योतिषी किसी भी टीवी चैनल पर आने को ललायित रहता है क्योंकि उसे मालूम है कि जो दिखता है वही बिकता है। और एक बार सप्ताहिक फल खाने का मौका मिल गया तो समझिए कि राजा भर्तृहरि का अमर फल मिल गया।

हमारे यहां पौराणिक मान्यता है कि जब कोई बच्चा पैद होता है तब से लेकर उसके मृत्यु तक का सारा लेखा जोखा वो अपने सिर पर ब्रह्मा जी से लिखवाकर लाता है जिसमें उसके अन्यप्रासन से लेकर 16 संस्कारों में दाह संस्कार की कवायत शामिल होती है ज्योतिष ऐसी महाविद्या है जिसके द्वारा कई चीज़ों के बारे में पूर्व ज्ञान तो होता ही है साथ ही ये भी पता चलता है कि अगर आपको गोली लगनी ही है तो उसकी दिशा और दशा में कुछ परिवर्तन की गुजाइश का रास्ता दिख जाता है। वैसे भी होनी और अनहोनी को तो कोई भी नहीं टाल सकता मगर इस विधा कि बदौलत उसके बारे में पहले से ही सचेत रहने का संकेत अवश्य मिल जाता है। लेकिन ये तभी संभव होता है जब ज्योतिषी गणना में पूरी तरह पारंगत हों और उन्हें इस विद्या का संपूर्ण ज्ञान हो। जरा सी भी चूक हुई तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है और हारिणी अकसर ‘कारिणी’ हो जाती है दुर्भाग्य ये है कि हमारे देश में न ही गुरु द्रोण साबित बच्चे और न ही एकलव्य और अर्जुन। ऐसे में इस महाविद्या को फुहड़ बनाने वाले घटोत्कक्षों की फौज से बचने में ही भलाई है क्योंकि जिस तरह वो शंका और डर का बीज जन्म कुंडली से निकालकर एक आम आदमी के दिमाग में डालते हैं उससे कई लोग अपना मानसिक संतुल भी खो बैठते हैं। मगर हमारे खबरिया चैनलों के मसिहाओं को ये समझाए कौन ??

1 टिप्पणी:

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