कैमरा का नशा
कैमरा इस युग का सबसे तिलस्मी और ताकतवर यंत्र है जिसकी आंखों में पूरी दुनिया घूमती है। इसकी बदौलत तस्वीर मिली और इसकी बदौलत ही सिनेमा का जन्म हुआ और पूरी दुनिया इसकी मुरीद हो गई। कैमरे के कमाल का नज़ारा हर अख़बार और पत्रिकाओं की सुर्खी का सबब बन जाता है। हर घर में कैमरे से निकली तस्वीरें दीवारों की शोभा बढ़ाती है और लोग कई बार किसी पुरानी तस्वीर को देख कर ना जाने कितनी पुरानी और खट्टी -मीठी यादों के समंदर में गोतज़न होने लग जाते हैं। ज़िंदगी कि तमाम यादों और लम्हों का आइना हैं ये तस्वीरें जिनके बिना ये ज़िंदगी ही कभी कभी अधूरी सी लगने लगती है।
कैमरे की वजह से ही आज टेलीविजन न्यूज़ हर आदमी की आवाज़ और चेहरा बन गया है। टेलीविजन कैमरा आज भी उसका ज़मीर, उसकी सोच और उसके क़िरदार का अहम हिस्सा बना हुआ है। ज़रा सोचिये, अगर कैमरा नहीं होता तो शायद ज़िंदगी कितनी अधूरी-अधूरी सी लगती।
दरअसल कैमरा एक ऐसा अचूक अस्त्र है जिसके सामने किसी दलील या दहाड़ की गुंजाइश नहीं रहती। कैमरे के ज़रिये किसी ख़ास क्षण में कैद की गयी तस्वीर की कीमत और ताकत हजारों शब्दों से ज्यादा भारी और प्रभावशाली होती है।
कैमरा वो चमत्कारी तिलिस्मान है जो कभी झूठ नहीं बोलता। इसमें जोड़ या घटाव की गुंजाइश नहीं होती। कैमरे में कैद और बंद लम्हे... वो तस्वीर और आवाज़ वो हथियार बन जाती है जिससे सब डरते हैं। और ख़ास कर नेताओं और अभिनेताओं की फौज तो उसको कभी-कभार सर पर लटकी तलवार से कम डरावना नहीं मानते।
मगर इसका नशा दारू से ज़्यादा दिलकश, चरस से ज्यादा चटख़ और जिस्मखोरी से भी ज्यादा जबरदस्त होता है। एक बार कैमरे की लत लग जाए या फिर कैमरे से इश्क हो जाए तो तो हर दिन इसके सामने आए बिना सितारों को चैन नहीं मिलता और कई पत्रकारों को खाना हज़म नहीं होता।
कैमरे की ताकत का अंदाजा मुझे पहली बार सन् 1991 में हुआ जब बंगलोर शहर से 30 किलोमीटर दूर स्वर्गीय राजीव गाँधी के हत्यारे सिवरासन, शुभा और उसके कुछ साथियों को एस टी एफ ने एक मकान से अन्दर घेर रखा था। मैं मांड्या में लिट्टे की एक टीम द्वारा ज़हर खा कर आत्महत्या करने की ख़बर सुन कर भागा था।
मगर वहाँ के एसपी एम एन रेड्डी को दिया गया संदेश सुनकर में वापस बंगलोर की तरफ़ भागा। रास्ते में मालूम पड़ा कि सिवरासन और उसके साथी कोन्नंकुंते नामक जगह पर एक घर में घेर लिए गये है। जब तक मैं वहाँ पहुंचा,तब तक हज़ार से ज़्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी। उसमें दूरदर्शन का एक कैमरामैन भी था जो पूरे तमाशे को अपना कैमरा छोड़कर लघु शंका करने गया था और उसके कैमरे तथा बैटरी का डब्बा और अन्य समान पर दो बंदर अचानक झपट्टा मारने पहुँच गए थे। पता नहीं, क्या दिल में आया और मैं उस कैमरे को उन बंदरों से बचाने के लिए अपने साथ लेकर चार कदम चला ही था कि गोलियों की आवाज़ सुनी। मैं फौरन वो कैमरा और बैटरी का झोला लेकर पास के एक मकान की छत की तरफ भागा ताकि मुझे सबकुछ साफ़ दिखे।
तभी सिवरासन ने अपने राइफल से शीशा तोड़ कर दस गोलियाँ दाग़ी और तीन सिपाहियों को जख्मी कर दिया। ये सब इतना अचानक हुआ कि मैं कुछ समझ नहीं पाया मगर अपना कैमरा रोल किए रखा। उसके बाद तो सैकड़ों गोलियों की बौछार शुरू हो गई और मैं वही दुबका रहा रात भर कि क्या पता, फिर कोई आवाज़ हो और गोलियां चलें। पूरी रात मैने उसी मकान के छत पर बिताई। दूसरे दिन सुबह होते होते तो मजमा लग गया। दिल्ली से एक हवाई जहाज़ में भरकर कमांडो की टीम आयी और फिर उसके बाद जो भी तमाशा वहाँ देखने को मिला वो मैं अपने कैमरे में कैद करता चला गया। तब तक दूरदर्शन वाले कैमरामैन का पता ही नहीं था।
क़रीब दस बजे मैंने कैमरामैन को ढूँढ निकाला और बोला कि वो उसी जगह पर रहे और मैं ज़रा अपने ऑफिस फोन करके आता हूँ। तब तक पाँच हज़ार से ज्यादा लोग वहाँ जमा हो गए थे। हिंदुस्तान टाइम्स की वीडियो मैगज़ीन आई विटनेस के संपादक करण थापर को मैंने फ़ोन किया कि मेरे पास वो टेप है जो किसी के पास नहीं। वे बोले कि फौरन उसको लेकर दिल्ली आ जाओ। मैंने पूछा कि फिर दूरदर्शन वाले का क्या होगा? वो बोले कि वो स्थानीय दूरर्शन केंद्र की निदेशक श्रीमती रुकिमिणि से बात कर लेंगे। मगर ये टेप किसी के हाथ नहीं लगना चाहिये। मैं सीधे दिल्ली भाग आया।
उस वक्त आई विटनेस का दफ्तर नेहरू प्लेस में हुआ करता था। टेप देखने के बाद करण थापर ने सर पीट लिया और कहा कि ‘इससे बड़ा तो गूफ-अप तो आज तक नहीं देखा’। फिर बाहर आकर बोले ‘अजय, तुम को पूरी घटना का सिक्वेंस याद है?’ मैंने कहा कि मुझे हर वो लम्हा याद है जो मैंने वहां झेला। फिर थापर साहब ने निरेत अल्वा को बुलाकर कहा, ‘इसका भी आंखों देखा हाल रिकार्ड कर लो। ये बहुत काम आयेगा।
उसी शाम को मैं बंगलोर वापस आ गया मगर जब मैंने सितंबर 1991 कि वो वीडियो मैगज़ीन देखी, तब जा कर लगा कि मैंने ये क्या कर दिया और उस दिन से मुझे कैमरे की भाषा और महत्ता समझ आने लगी।
जब मैने उस टेप से खींचे गए फुटेज को देखा तो तब एहसास हुआ कि ये कितना बड़ा हथियार है। उसी दिन से ठान ली कि जल्द ही मैं अपना वीडियो कैमरा खरीदूँगा। मगर उसका दाम सुनकर साँप सूँघ गया।
उसके बाद मैंने कैमरे के बारे में और जानना शुरू किया और उसी का नतीजा था कि मैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बना और कई सारी अद्भुत तस्वीरें खींची। मेरे पास अपनी खींची हुई हाथी, तेंदुआ से लेकर शेर और बाघ की आज भी 1500 से ज्यादा तस्वीरें हैं जो उन लम्हों की याद दिलाती हैं जब एक फोटो के लिए मचान पर में घंटों बिताया करता था और छूट्टी मिलने पर सीधे जंगल की ओर ही भागा करता था। अजीब नशा सा बन गया था फोटोग्राफी।
सन् 1994 तक आते-आते मेरे पास एक बड़ा ही छोटा मगर अति कारगर वीडियो कैमरा हाथ लगा जो न्यूज़ के हिसाब से ऐके 56 से कम नही था. इसकी खासियत तब मालूम पड़ी जब 1994 विधान सभा चुनाव के बाद रामकृष्ण हेगड़े के पांव पर गिरकर एच डी देवेगौड़ के मुख्यमंत्री बनने की अपील का वो अद्भुत दृश्य मैंने चुपके से उतार लिया। दूसरे दिन जब देवेगौड़ा मुख्यमंत्री बने तो उनके समर्थकों ने हेगड़े के साथ जो सुलूक किया उसका सारा नजारा मैंने उसी कमरे में कैद किया। उसके बाद से वो कैमरा हमेशा आपने पास रखने की आदत हो गई।और आजतक में कई एक्सक्लूसिव फुटेज का बैंक बनाकर रखने की नसीहत भी काम आई।.
‘आजतक’ के संपादक की खास हिदायत थी कि बिना पूरे विजुअल के कोई ख़बर नही चलेगी। मेरे पुराने 200 टेप इस मामले में अकसर रामबाण साबित होते थे। यद्यपि मेरे पास पूरी कैमरा टीम होती थी फिर भी मैं इस कैमरे का इस्तेमाल ‘खाने के बाद मिठाई’ की तरह करता था और वही ख़बर को पूरी करने में कम आता था।
बैंगलोर के ऐसे तीन वाकये थे जिन्होंने हमेशा अपने पास एक छोटा मगर कारगर कैमरा रखने कि आदत का सही सरियत और मुआवजा दिया।
पहली घटना वो थी जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने और सभी लोगों ने उन्हें ‘माटी का लाल’ कह कर आसमान पर चढ़ा दिया था अचानक मुख्यमंत्री जे एच पटेल दिख गये और मैंने उनको सीधे पूछ लिया कि क्या आप भी माटी का लाल स्तुती गान में शामिल हैं, तो वो चिढ़ कर बोल पड़े ‘अहमक जैसी बातें मत किया करो’। अगर ये गौड़ा ही माटी का लाल है तो हम लोग क्या आसमान से उतरे हैं?
फिर काम आया इसी छोटे कैमरे का कमाल और दूसरे दिन मैंने आजतक मैंने ये कहानी चेपा ही दी। फिर पटेल जी का फोन आया इसे रिकॉर्ड क्यों किया? फिर बोले, ‘ठीक ही तो है यही सच है और वही तो मैंने कहा है’।
दूसरी घटना थी पूर्व रेलमंत्री सी के जफर शरीफ के टिकट कटने की। मैंने एक स्थानीय अखबार में पढ़ा कि जाफर शरीफ के पास काफी जायदाद, फ्लैट्स तथा फर्म हाउस हैं। फिर क्या था? मेरे दिमाग में यही कीड़ा बैठ गया कि जरा देखें तो सही कि वो सारी जायदाद है कहाँ? मैंने तीन दिनों तक दौड़ भाग करके सारी तस्वीरें ले ली और उसके ऊपर ख़बर बना दी। मालूम पड़ा कि उस खबर के चलने के दूसरे दिन जाफर शरीफ कि बैंगलोर दक्षिण क्षेत्र से संसदीय टिकट कट गई। काफ़ी लोगों ने बुरा भला कहा मगर। ये छोटा कैमरा फिर अपना कमाल दिखा गया।
तीसरी घटना थी मंगलौर के कोजेंट्रिक्स पॉवर प्लांट पर प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के खिलाफ श्रीमती मेनका गाँधी का आरोप और देवेगौड़ा की पारदर्शिता का अंदाज़। वो कैमरे के सामने कुछ बोले। ही नही मगर दफ्तर का आदेश था कि ख़बर तो करनी है और उनको ‘बाइट’ चाहिए। फिर मैंने इसी ‘संजीवनी’ का सहारा लिया और छोटा कैमरा लेकर उनके सामने पहुँचा और सीधा सवाल किया। अचानक गौड़ा जी रौद्र रुप में आ गए और दस लोगों के सामने बदन से कुर्ता निकाल कर जरासंध की तरह ताल ठोंकने लगे। खीज कर बोले "और दिखाऊं पारदर्शिता"? वो वाहियात औरत हमेशा तिल का ताड़ बनाती रहती है। देखो, कहां छुपाया है मैंने पैसा। इस कुर्ते की जेबें खाली हैं समझे?’ शायद भावावेश में उनकों पता नही चल सका कि मेरा छोटा कैमरा ‘ऑन’ था और उसमें उनके तीन मिनट के 'यक्षगान' का हर सेकंड कैद हो गया था। दूसरे दिन आजतक में उनकी इस वीर गाथा की ख़बर चल गई।
मगर उनके बाद तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री श्री चांद महल इब्राहीम इतने कुपित और कलुषित हुए कि अगले तीन माह तक मेरा जीना हराम कर दिया।
खैर, ये पेशे की परेशानी तो हर पत्रकार के सामने कभी ना कभी आती ही है। मगर तब से लेकर अब तक भी मैं कैमरा का कायल हूँ और जब भी कोई नया और छोटा वीडियो कैमरा बाज़ार में आता है तो एक सच्चे शहदायी की तरह देखने खींचा चला जाता हूं।
मेरा मानना है कि हर टेलीविजन पत्रकार को कैमरा का ज्ञान होना चाहिये और कभी कभार उसे अपना हाथ भी आज़माना चाहिए। मैं ख़बर इसलिए नहीं ‘मिस’ करता था कि मुझे पता था कि सही क्षण का विजुअल नही मिलने से बंटाधार हो जायेगा और वो मुझे कतई गंवारा नहीं था। आज भी वो सिलसिला बदस्तूर जारी है। नई किताबें और नया कैमरा मेरी कमजोरी है और ऊपर वाले से यही दुआ है कि वो कमोवेश हमेशा बनी रहे।
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
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Camera aaj kuch zyada hi badal gaya hai, woh sach ke bajaye jhooth hi boolta dikhta kai. Pehle ka camera shayad sasta tha lekin uski keemat phir bhi zyada thi par ab mehanga zaroor hai lekin aphi izzat kho chuka hai. Vakai, aaapka camera lajawaab tha.
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