बुधवार, 19 मई 2010

लाइव की लुगाई और फोनो का फितूर

टेलीविज्ञान हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। आजकल की भागदौड़ की जिदंगी में सूचना के साथ-साथ मनोरंजन का भी ये सबसे सस्ता और सशक्त कारगर जरिया बन गया है। दुनिया के किसी कोने में घटी कोई भी घटना दर्शकों के सामने इस माध्यम के जरिये मिनटों में सीधे दिखने लगती है। राजनीति से लेकर खेलकूद, मनोरंजन से लेकर विज्ञान और मनोविज्ञान, बच्चों से लेकर बूढ़े तक की जिन्दगी के तकरीबन हरेक हिस्से को ये टेलीविजन नियमित रूप से छूता है और उसकी सोच को भी प्रभावित करता है।

दरअसल टेलीविजन पर आज के समाज की निर्भरता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि ये सोचना मुश्किल सा लगता है कि इस माध्यम के बिना क्या आज का आदमी ठीक तरह से जी पाएगा या नहीं। कहीं एक मिनट के खास दृश्य के प्रसारण से कहीं सरकार गिर जाती है तो कहीं दंगा हो जाता है। तस्वीर और आवाज के मिश्रण से बने इस सशक्त माध्यम ने हमारे समाज को इतनी ज्यादा लत लगा दी है कि लगता है जैसे टेलीविजन बिन घर सूना.....

टेलिविजन इस सदी के सबसे चमत्कारिक अविष्कारों में अग्रणी माना जाता है। मगर हैरानी की बात ये है कि अन्य उपकरणों की तरह इसके अविष्कार के साथ किसी एक वैज्ञानिक या अनुसंधानकर्ता का नाम नहीं जुड़ा है बल्कि इसको विकसित करने में विश्व के कई देशों के वैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं की टीम ने समय-समय पर उसमें अपना योगदान दिया और आज हम टेवलेस टेप और प्लाज्मा की बात करते हैं।



दरअसल टेलीविजन पर अनुसंधान की प्रक्रिया सन 1907 में शुरू हुई। और सन 1920 तक ब्रिटिश अनुसंधानकर्ता ए कैम्पवेल सुईनटोन तथा रूसी वैज्ञानिक बोरिश रोसिन ने इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके बाद जर्मन वैज्ञानिक पॉल निप्कोह ने दुनिया का पहला टीवी स्कैनर बनाया।



जहां तक टेलीविजन न्यूज का सवाल है तो बीबीसी को इसकी मातामही कहा जा सकता है क्योंकि सन 1932 में बीबीसी ने ही इसकी शुरुआत की थी। 22 अगस्त 1932 को लंदन के ब्रॉडकास्ट हाउस से पहली बार टीवी का प्रायोगिक प्रसारण शुरू हुआ था। और 2 नवंबर 1932 को बीबीसी ने एलेक्जेंडरा राजमहल से दुनिया का पहला नियमित टीवी चैनल का प्रसारण शुरू कर दिया था।



उसके 5 साल बाद यानि 13 मई 1937 को राजा जॉर्ज छठवें ने राज्याभिषेक समारोह को ब्रिटेन की जनता तक सीधे पहुंचाने के लिए पहली बार ओवी वैन का इस्तेमाल किया। उसके बाद 12 जून 1937 को पहली बार विविंल्डन टेनिस का सीधा प्रसारण दिखाया गया था।



9 नवंबर 1947 को टेलीविजन के इतिहास में पहली बार टेली रिकार्डिंग कर उसी कार्यक्रम का रात में प्रसारण किया गया। 27 अगस्त 1950 को बीबीसी ने पूरे यूरोपीय महादेश में लाइव टेलीविजन दिखाने का कीर्तिमान स्थापित किया और सन 1967 में पहली बार बीबीसी टीवी अपने पहले सैटेलाइट कार्यक्रम ‘हमारी दुनिया’ के जरिए पूरे विश्व में प्रसारित होने लगा। साथ ही सितंबर 1976 में आईटीएन नेटवर्क के संवाददाता माइकल निकोल्सन ने पहली बार लाइव टेलीविजन न्यूज बुलेटिन में फोनो का इस्तेमाल किया था।



दूसरी तरफ अमेरिका में भी 1930 के दशक में टेलीविजन सभ्यता जोर पकड़ने लगी और सन 1946 में ABC टेलीविजन नेटवर्क का उदय हुआ। पहली बार रंगीन टेलीविजन का अविर्भाव 17 दिसंबर 1953 को अमेरिका में हुआ। और विश्व का पहला रंगीन विज्ञापन कैप्सूल 6 अगस्त 1953 को न्यूयॉर्क में प्रसारित हुआ था।



अमेरिका में NBC टेलीविजन नेटवर्क ने सन 1954 में मशहूर विदूषक स्टीव एलन द्वारा ‘टू नाइट शो ‘ प्रसारित कर तहलका मचा दिया था। मगर टेलीविजन के क्षेत्र में सन् 1960 में एक नया इतिहास बना और राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रिचर्ड निक्सन और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जॉन एफ कैनेडी के बीच राष्ट्रीय स्तर पर सीधे प्रसारित परिचर्चा को अमेरिकी जनता ने खूब सराहा। 26 सितंबर 1960 को प्रसारित इस ‘लाइव डिवेट’ ने टेलीविजन की पहुंच तथा लोकप्रियता को एक नया मुकाम दिया। और अमेरिका जनता इस उपकरण की दीवानी हो गई।



अमेरिकी टेलीविजन के इतिहास में एक और नया अध्याय जुड़ा 22 नवंबर 1960 को जब NBC चैनल ने डलास में हुए राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या की तस्वीरे प्रसारित की और उसके बाद पूरे चार दिनों तक अमेरिकी जनता इसी शोक लहर में डूबी रही। टेलीविजन पटल पर राष्ट्रपति की शव यात्रा से लेकर कातिल ली. हार्वे ऑस्वर्ड को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने का सीधा प्रसारण देखना 33 लाख अमेरिकी जनता के लिए एक नया अनुभव था। NBC के रिपोर्टर जैक रूबी ने ऑस्वॉर्ड की पहली तस्वीर और उसकी हवालात यात्रा का सीधा प्रसारण अपने दर्शकों को दिखाया था।



टेलीविजन के इतिहास में एक और नया इतिहास 20 जुलाई 1967 को जुड़ा जब चांद पर गए अंतरिक्ष यात्री नील आर्मीस्ट्रांग और एडविन आर्डिन ने चांद पर पहला कदम रखा। पूरी दुनिया की करोड़ों जनता ने अमेरिका की नेटवर्क टीवी के जरिए इन दोनों आतंरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतरते देखा। सीधा प्रसारण के इतिहास में पृथ्वी से चांद तक की दूरी तय करने की ये पहली मिसाल थी।



उसके बाद सन 1976 में टेड टर्नर ने एटलांटा शहर में अपना सुपर स्टेशन शूरू किया और पहली बार केबल नेटवर्क के जरिए टेलीविजन प्रसारण का इतिहास कायम हुआ। सन 1979 में सिर्फ खेलकूद का विशेष टीवी नेटवर्क ईएसपीएन स्थापित हुआ। और इसी क्रम में सन 1980 में सीएनएन का जन्म हुआ।



सन 1981 में पहली बार दुनिया भर की जनता ने इरान-इराक युद्ध का सीधा प्रसारण अपने बेडरूम तक में देखा। और सीएनएन के रिपोर्टर पीटर आर्रनट रातो-रात दुनिया के सबसे चर्चित पत्रकार बन गये। युद्ध क्षेत्र से खबरों के सीधे प्रसारण की ये पहली मिसाल थी।



टेलीविजन के इतिहास में कुछ खास दिन आज भी इस सुनहरे सफर का आइनादार है। मिसाल के तौर पर पहली बार 1933 में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूज्वेल्ट ने देश की जनता को टेलीविजन के जरिए सीधा संबोधित किया था। सीबीएस चैनल ने 1938 में पहली बार वर्ल्ड न्यूज राउंड-अप का प्रसारण किया था। सन 1947 में कांग्रेस की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू हुआ था। और सन 1967 में अमेरिका की 94 फीसदी जनता ने अतंरिक्ष यात्री नील आर्मीस्ट्रांग को चांद पर उतरते देखा था। उसी तरह ब्रिटेन में रानी विक्टोरिया द्वारा 1939 में पहली बार क्रिसमस का संदेश राष्ट्र के नाम सीधा प्रसारित किया गया था।



टेलीविजन प्रस्तुतकर्ताओं की श्रेणी में अमेरिका के टोंम ब्रोकाओ एडवार्ड आर मुरौ, सर पीटर जेनिंग्स, मर्लिन सेंडर्स, पाउलिने फ्रेडेरिक और डेन रार्थर से लेकर बीबीसी के मेक्क डोनाल्ड मेकार्मिक तथा निकी मार्कस जैस लोगों को आज भी दुनिया आदरपूर्वक याद करती है।



भारत में टेलीविजन



भारत में टेलीविजन की शुरुआत निहायत ही छोटे स्तर पर 13 सितंबर 1959 को दिल्ली शहर से हुई थी। यहां एक छोटे ट्रांसमीटर और छोटे काम चलाऊ स्टूडियो से पहला प्रसारण शुरू हुआ। नियमित प्रसारण आकाशवाणी के प्रभाग के तौर पर 1965 से शुरू हुआ। इसे मुंबई तथा अमृतसर से सन 1972 में जोड़ा गया था और सन 1975 तक देश के सात शहरों में इसका प्रसारण देखा जाने लगा था।



सन 1980 के दशक में टेलीविजन की दुनिया में विकसित दूरगामी आयामों के मद्देनजर भारत भी अपनी अलग पहचान बनाने की जुगत में लगा रहा। सन 1982 की आखिर में एशियाड खेलकूद प्रतियोगिता के समय भारत में रंगीन टेलीविजन का आगाज हुआ।



कांग्रेस सरकार की खुला आसमान नीति के तहत सीएनएन जैसी विदेशी टेलीविजन संस्थाओं ने स्टार टीवी के जरिए भारत में प्रसारण 1991 में शुरू किया। सन टीवी नेटवर्क 1992 में स्थापित दक्षिण भारत का पहला निजी चैनल बना जबकि उत्तरी भारत की कमान सुभाष चंद गोयल की जीटीवी ने संभाली। सन 1994 तक 12 निजी चैनल सैटेलाइट के जरिए देखे जाने लगे थे। जीटीवी ने 1995 में जीन्यूज नामक 24 घंटे के खबरिया चैनल की शुरुआत की और 1998 में एनडीटीवी तथा रुपर्ट मुर्डाक की स्टार टीवी के साथ मिलकर स्टार न्यूज चैनल की स्थापना की गई।



दूसरी तरफ राघव बहल की टीवी 18 ने सीएनबीसी के साथ मिलकर 1999 में सीएनबीसी इंडिया चैनल बनाया। डीडी-2 पर आजतक जैसे मशहूर कार्यक्रम बनाने वाले टीवीटूडे समूह ने 24 घंटे के हिंदी न्यूज चैनल का प्रसारण दिसंबर 2000 से शुरू किया। 2003 में एनडीटीवी समूह एक साथ 2 खबरिया चैनल लेकर अवतरित हुआ। और दूसरी तरफ 28 मार्च 2003 को सहारा इंडिया परिवार ने भी अपना 24 घंटे का न्यूज चैनल सहारा समय खबरों के बाजार में उतारा। वरिष्ट पत्रकार रजत शर्मा ने 20 मई 2004 को इंडिया टीवी चैनल के जरिए अपनी नई पारी की शुरुआत की।



17 जनवरी 2005 को एनडीटीवी ने अपना विजनेस चैनल एनडीटीवी प्रॉफिट लॉन्च किया और 27 मार्च 2005 को जागरण समूह ने चैनल-7 नामक 24 घंटे वाले खबरिया चैनल की शुरुआत की।



पिछले दस सालों में भारत में टेलीविजन चैनलों की बाढ़ सी आ गई है। आज की तारीख में भारत की सरजमीं से कुल 570 टेलीविजन चैनल अपलिंक किए जाते हैं जिनमें 59 खबरिया चैनल हैं। करीब 200 अन्य चैनलों के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास लाइसेंस का आवेदन पड़ा है। जाहिर है ऐसे माहौल में हर चैलन खबर के हर टुकड़े पर भी कुछ खास करने की होड़ में क्या-क्या दिखाता है और अपने दर्शकों को लुभाने की हर कोशिश करता है।



आजकल का माहौल ऐसा हो गया है कि बहुत कम चैनल अच्छी स्टोरी का पैकेज बना कर दर्शकों को दिखाते हैं। आधी से ज्यादा खबरें लाइव ही जाती हैं क्योंकि उसी पर टीआरपी से लेकर कई और चीजों की गणित कायम है।



कई महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शकों की जानकारी के लिए सीधे दिखाना आवश्य भी हो जाता है। कोई बड़ा हादसा या बड़ी विभिषिका या राजनीतिक भूस्खलन या फिर खेलकूद.. यहां तक की पर्यावरण और आम जिन्दगी से जुड़े मसलों और मरहलों पर बड़ी खबरों को सीधे दिखाने पर कोई हर्ज नहीं है। मगर परेशानी तब होती है जब सब कुछ ढाक के तीन पात की तरह हो जाता है और सबकुछ ब्रेकिंग न्यूज ही बन जाता है। और उसके बाद जो सिलसिला जो शुरू होता है उसका अंत कहां होता है ये तो रिपोर्टर भी नहीं जान पाता।



आमतौर पर ओवी वैन का इस्तेमाल किसी भी बड़ी घटना की पहली तस्वीर दिखाने के लिए किया जाता था। मगर अब उस तस्वीर से ज्यादा उस घटना विशेष पर संवाददाताओं का प्रवचन और दर्शकों के नाम धारा प्रवाह संदेश ज्यादा वक्त ले जाता है।

आज भारत में न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गई है, नेशनल न्यूज चैनल से लेकर स्टेट स्तर पर खबरिया चैनलों का मकड़जाल फैला हुआ है। इनकी खबरों की भूख ऐसी है जैसे जंगल में 42 दिन से भूखे शेर को खाना नहीं मिला हो और बेचारा पेड़ की सूखी छाल को ही शिकार समझ कर भक्षण कर रहा हो। ऐसा ही हाल खबरिया चैलनों का हो गया है। खबर न मिलने पर बेतुकी घटनाओं को ही खबर बनाकर उस पर लाइव लेना शुरू कर देते हैं। दिल्ली में बूंदा-बादी शुरू हो जाए। तो फट से ओवी वैन लगाकर भाई लोग लाइव की सेना तैनात कर देते हैं और बारिश पर लाइव चैट। रिपोर्टर बांदू-बांदी होने की जगह यानी घटना स्थल से चैट देने लगता है। हद तो तब हो जाती है जब बारिश की बात कर रहे रिपोर्टर की शर्ट तक नहीं गिली होती और खबरिया चैनल उस पूरा आधा घंटे का लाइव खेल का खेला खेल जाते हैं।



लाइव की लुगाई का मोह ऐसा है कि जिसे ‘लाइव’ करने का मौका मिल जाता है वो उसे बिना ताने नहीं छोड़ता। भाई लोगों को डर होता है कि कहीं दूसरा खबरिया चैनल ज्यादा देर तक लाइव की लुगाई दिखाकर टीआरपी के ज्यादा बच्चे न पैदा कर ले। बारिश की खबर पर अबोध बालक की तरह बिना किसी तैयारी के बोल रहा रिपोर्टर बारिश की तरफ देखकर सोचता है कि काश उसने मौसम विभाग के दफ्तर में कुछ दिन काम किया होता तो बारिश के बारे में ऐसा व्याख्यान देता कि चैनल हेड तुरंत मौसम बीट बना कर उसे मौसम बीट का हेड बना देता। फिर तो बारिश में लाइव और लाइव में बारिश का मज़ा ही कुछ और होता!



लाइव की लुगाई को 24 घंटे जगना पड़ता है पता नहीं कब किसको लाइव की लुगाई की याद आ जाए और किसी महान खबर पर लाइव की लुगाई को नाचना पड़े। लाइव का मोह इतना अंधा है कि अगर किसी खबर पर दूसरे खबरिया चैनल ने ओवी वैन लेकर घटना स्थल से लाइव लेना शुरू कर दिया तो बाकी चैनलों में ज्वालामुखी फट पड़ता है और उससे निकने वाली राख पूरे न्यूजरूम में कोहराम मचा देती है। हर किसी को इंतजार होता होता है कि ओवी वैन की पालकी कब पहुंचे कब, और कब लाइव की लुगाई का नाच शुरू होगा।



सुबह से लेकर शाम तक ओवी वैन दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर पर पर लाइव के ताड़ में घूमती रहती हैं और छोटी सी घटना का आड़ मिलते ही लाइव का लुगाई का मुंह दिखाने का पूरा खेल शुरु हो जाता है। और घटना स्थल पर पहुंचा रिपोर्टर घटना का बयान तब तक बिना सांस लिए करता रहता है जब तक उसकी सांस न फूलने लगे। उसे लगता है कि कहीं उससे ज्यादा एंकर न बोल ले और पूरी पारी में उसका रोल कम न रह जाए। कभी-कभी एंकर और रिपोर्टर खुद ज्यादा से ज्यादा ज्ञान देने के चक्कर में लाइव का बेड़ागर्क कर देते हैं। खबर की खिचड़ी बनने कि जगह, पुलाव तैयार हो जाता है।



लेकिन उससे भी ज्यादा त्रासदी पूर्ण घटना तब होती है जब अदना सी बात पर भी चैनल के संपादक रिपोर्टरों की फौज को फौरन ‘फोनों’ देने का फरमान जारी करते हैं। ये दिगर बात है कि खबर में इतनी दम न हो कि राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जा सके। मगर चूकि एक प्रतिस्पर्धी चैनल ने कोई खबर फोड़ दी तो बाकी चैनलों के न्यूज रूम में भी मेढ़क की तरह उछल कूद शुरू हो जाती है और फोनो देने की गुहार भी।



अक्सर ऐसा होता है कि बीट रिपोर्टर तो अपना काम निकाल ले जाता है। और जैसे-तैसे उस खबर के बारे में दस-पांच लाइन ठीक-ठाक बोलकर पतली गली से निकल जाता है। उसको इस खबर के बावत बाइट लेने की चिंता हो जाती है और इस चक्कर में कई घंटे भी लग जाते हैं। मगर चुकि उस खबर को जिंदा रखना है और अन्य चैनलों के मुकाबले हर आधे घंटे पर नए तड़के के साथ अपडेट देना होता है तो बेचारे रिपोर्टर की हालत अजीबोगरीब होती है।



हद तो तब होती है जब वो बेचारा लघु शंका या दीर्घ शंका में भी जाए तो अपना फोन कान पर लटकाए रहने पर मजबूर होता है। ऐसे में पूरानी जानकारी के बलबूते पर ही उसे अपना पैंतरा बदलना पड़ता है और देहाड़ी बचानी पड़ती है। मगर चैनल संचालकों के दिमाग पर फोनो का फितूर इतना हाबी हो चुका होता है कि उसके चक्कर में कई रिपोर्टर भयानक गलतियां कर बैठते हैं और अक्सर अर्थ का अनर्थ हो जाता है। ऐसे में एक रिपोर्टर की गलती पूरे चैनल की इज्जत पर पानी फेर देता है।



फोनो के फितूर का फीता गजब का है। जब तक विजुअल न आ रहे हों या और कोई बात न सूझ रही हो तो फोनो के फीते से खबर को बार-बार नापा जाता है। एक छोटी सी घटना को पांच-पांच मिनट तक सिर से पैर तक बीसों बार रिपोर्टर फोनो के फीते से नापता रहता है। लेकिन एंकर महोदया बार-बार बोलती रहती हैं कि ‘जरा विस्तार से बताइए आखिर हुआ क्या’?



अगर किसी विशेषज्ञ का फोन किसी घटना पर किसी दूसरे चैनल को मिल गया तो न्यूज रूम में हंगामा मच जाता है कि पहले फोनो हमें क्यों नहीं मिला? अब जूठा फोनो लेना पड़ेगा। लेकिन खबरिया चैनल के भाई लोग जूठा फोनो लेने पर कोई परहेज नहीं करते। इसीलिए एक विशेषज्ञ दस चैनलों पर एक घटना को पचास बार दोहराता है। घटना अगर इंसान होती तो अपना इतनी बार बखान सुनकर फोनो देने वालों को 5 स्टार होटल में पार्टी जरूर देती...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें